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सर्वेश अंबेडकर - आषाढ़ी पूर्णिमा का महत्व, महात्मा बुद्ध के पावन संदेशों को आत्मसात करने का समय है चतुर्मास

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  • July-13-2022
"धम्मचक्कपवत्तन दिवसो, गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, वर्षावास प्रारम्भ दिवस", उक्त दिवस एक ही अवसर का भिन्न भिन्न नाम है। यह एक वैश्विक महत्व का दिन है, यह वह दिन है जिस दिन से ज्ञान का पहिया बुद्ध ने लोकहित निमित्त चलायमान किया था। जो अधिकार जाति और वर्ग विशेष के लिए थे, वह सबके लिए सुलभ किया गया था। इस प्रकार बुद्ध विश्व के पहले महामानव थे, जिन्होंने धरती पर पहली बार सामाजिक क्रांति की शुरुआत की थी।

इतिहास में आषाढ़ी पूर्णिमा निम्नलिखित बातों के लिए प्रसिद्ध है :-


  • पहला - गौतम सिद्धार्थ की माता महामाया का गर्भाधान

  • दूसरा - सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण अर्थात गृहत्याग

  • तीसरा - बुद्ध सम्यक सम्बोधि के बात सारनाथ में सर्व प्रथम पंचवर्गीय परिव्राजकों को गया दिया था


  • चौथा - पंचवर्गीय परिव्राजकों ने बुद्ध को अपना गुरु माना था


आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन से ही बौद्ध भिक्षु अगले तीन माह तक एक ही स्थान पर रह कर अध्ययन, अध्यापन, चिंतन-मनन और देशना करते हैं। कार्तिक का पूरा माह वर्षावास समापन का उत्सव चलते रहता है, इसलिए इसे चातुर्मास भी कहा जाता है। वर्षावास का महत्व इतना है कि विदेशी भिक्षु पयर्टकों ने भारत को वस्सावास की भूमि कहा है। दो वर्षावास के बीच 12 माह होता है, इसलिए बारह माह को एक वर्ष भी कहा जाता है। 12 माह को एक वर्ष कहने की परंपरा वर्षावास के महत्व को दर्शाता है क्योंकि वर्ष शब्द वर्षावास से ही निकली है। चूंकि इस परंपरा की शुरुआत भारत में शुरू हुई थी और इसका बहुत ही व्यापक सांस्कृतिक महत्व है। इसलिए भारत को भारत वर्ष भी कहा जाता है। इतना है महत्व वर्षावास का।


आषाढ़ी पूर्णिमा का दिन बुद्ध द्वारा प्रथम बार ज्ञान ज्ञान देने का दिन है। आषाढ़ माह जुलाई में पड़ता है, अतः अंग्रेजों ने इस माह को ज्ञान देने के महत्व का समय मान कर उच्च शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक सत्र जुलाई से किया और लोकगुरु बुद्ध की परंपरा का सम्मान किया है, तब से शैक्षणिक सत्र जुलाई से चला आ रहा है। नया वित्तीय वर्ष 01 अप्रैल से और कैलेंडर वर्ष 01 जनवरी से प्रारम्भ होता है।


आषाढ़ी पूर्णिमा यानि गुरु पूर्णिमा आर्य उपोसथ का दिन है, अर्थात निर्दोष जीवन जीने के अभ्यास और संकल्प का दिन है। बौद्ध गृहस्थों के बीच इस दिन श्वेत परिधान धारण करने, खीर भोजन करने, अष्टशील पालन करने, धम्म देसना श्रवण करने, तिसरण -पंचशील, तिरत्न वंदना और विभिन्न सुत्तों के पठन करने का दिन है तथा सुपात्र को दान करने की परंपरा है। दुनिया के सभी बौद्ध देशों में यह प्रचलित है।

वे लोग कर्महीन हैं जो लोकपूजित बुद्ध के आश्रय छोड़ किसी अन्य की खोज में भटकते हैं। बुद्ध धम्म मानव धम्म है, जो प्राणिमात्र के कल्याण की बात करता है। बुद्ध स्थापित धम्म सबके हित और सुख के निमित्त है। यह सागर के समान है, यह बिना पासपोर्ट और बिना वीजा के भारत की सीमा से पार पूरी दुनिया में फैला है। इसके मूल तत्व हैं - प्रज्ञा, करुणा, शील और एकता। यह तर्क और वैज्ञानिकता की प्राथमिकता देता है। यह व्यक्ति को उसके भीतर की शक्तियों से उसे परिचय करा कर व्यक्ति को शांति, सुख और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर करता है। बुद्ध के धम्म के केंद्र में इंसान है ईश्वर नहीं।

(आलेख साभार - डॉ विजय कुमार त्रिशरण)


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