गुरुनानक सिखों के प्रथम गुरु हैं | इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह जैसे कई नामो से सम्बोधित किया गया है | गुरुनानक देव जी के उपदेशों और वाणी में जो एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है उसी का प्रतिक है लंगर जो की नानक जी के द्वारा ही शुरू किया गया है | वे जहाँ भी जाते थे जमीं पे बैठकर ही खाना खाते थे | गुरू नानक देव जी ने अपनी कर्मशीलता को ऊंच-नीच, जात-पात से उपर उठकर प्राथमिकता दी |
गुरुद्वारा के लंगर में विभिन्न जातियों के लोग, छोटे बड़े सब लोग एक ही स्थान पर बैठकर खाते हैं | उनके इसी उपदेश को मानते हुए आज भी पंजाब में यह प्रथा चलती आ रही है और न ही सिर्फ पंजाब में बल्कि सिख कौम के लोग देश विदेश जहाँ भी रहें, हर जगह इस प्रथा को चला रहे हैं | आज भी इस कोरोना के समय में जहाँ पूरा विश्व जूझ रहा था सिखों ने जगह-जगह लोगों को खाना खिला कर अपनी परंपरा को बरक़रार रखा है |
गुरुनानक का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था नानक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के थे, ७-८ साल की उम्र में उनका स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तब से आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग के लगने लगा और काफी सारी ऐसी घटनाएं हुई जिसके कारण लोग भी इन्हे दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे |
गुरुनानक जगह जगह जाकर उपदेश दिया करते थे तथा इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है और उनकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था।
गुरुनानक जी ने हर जगह ये प्रचार प्रसार किया की ईश्वर एक है, उस ईश्वर को मैंने वाले सब इंसान एक बराबर हैं, उनको ऊंच-नीच, जात-पात के आधार पे बाँटना गलत है |
रचनाएँ -
नानक अच्छे सूफी कवि भी थे। उनकी भाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे।
गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, बारह माह आदि |